जैसा की कहा भी गया है, काबिल बनो सफलता झक मारकर आएगी, यानि जो व्यक्ति काबिल होते है, उन्हे सफलता के मार्ग मे आगे बढ्ने से कोई नहीं रोक सकता है, तो चलिये इस पोस्ट मे इसी सोंच पर आधारित कहानी काबिल व्यक्ति की पहचान की कहानी | Kabil Vyakti Ki Pahhan ki Hindi Kahani बताने जा रहे है, जिस कहानी काबिल व्यक्ति की पहचान की कहानी – Kabil Vyakti Ki Pahhan ki Kahani को पढ़कर आपको काफी कुछ सीखने को मिलेगा, और एक अच्छी सीख मिलेगी,
काबिल व्यक्ति की पहचान की कहानी
Kabil Vyakti Ki Pahhan ki Kahani
एक बार की बात है, किसी गाँव मे बहुत धनी सेठ रहता था, उसको ईश्वर के प्रति अपर श्रद्धा थी, फिर उसने अपने बचाए हुए पैसो से गाँव मे एक बहुत बड़ा मंदिर बनवाया,
फिर जब मंदिर जब बन के तैयार हुआ तो बहुत से दर्शनार्थी मंदिर में दर्शन लाभ के लिए पहुँचने लगे, मंदिर की भव्यता को देख लोग मंदिर का गुणगान करते नहीं थकते थे।
धीरे धीरे समय के साथ मंदिर की ख्याती जाने माने मंदिरों में होने लगी और दूर दूर से लोग दर्शन लाभ को मंदिर में पहुँचने लगे, इस तरह उस सेठ ने श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देख उस व्यक्ति ने मंदिर में ही श्रद्धालुओं के लिए भोजन और ठहरने की व्यवस्था का प्रबंध किया,
लेकिन जल्द ही उस सेठ को एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता हुई, जो मंदिर में इन सभी व्यवस्थाओं का देखरेख करे और मंदिर की व्यवस्था को बनाए रखे,
फिर सेठ जी ने अगले ही दिन उसने मंदिर के बाहर एक व्यवस्थापक की आवश्यकता के लिए नोटिस लगा दिया, नोटिस को देख कई लोग उस धनी व्यक्ति के पास आने लगे।
लोगों को पता था की यदि मंदिर में व्यवस्थापक का काम मिल जाएगा, तो वेतन भी बहुत अच्छा मिलेगा, और साथ मे रहना खाना भी सबकुछ फ्री मे मिलेगा,
लेकिन वह धनी व्यक्ति सभी से मिलने के बाद उन्हें लौटा देता और सभी से यही कहता की, “मुझे मंदिर के व्यवस्थापक के लिए एक ऐसा योग्य व्यक्ति चाहिए, जो मंदिर की सही से देखरेख कर सके”
बहुत से लोग लौटाए जाने पर उस धनी पुरुष को मन ही मन गलियां देते, कुछ लोग उसे मुर्ख और पागल भी कह देते थे, लेकिन वह सेठ किसी की इन बातो पर ध्यान नहीं देता और मंदिर के व्यवस्थापक के लिए एक धनी व्यक्ति की खोज में लगा रहता,
इस तरह वह सेठ व्यक्ति रोज सुबह अपने घर की छत पर बैठकर मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को देखा करता,
एक दिन की बात है, रोज की तरह जब मंदिर के कपाट खुल गए तो एक बहुत ही गरीब व्यक्ति मंदिर में भगवान के दर्शन को आया, जिसे वह सेठ अपने घर की छत पर बैठा उसे देख रहा था, उसने फटे हुए और मैले कपडे पहने थे, देखने से बहुत पढ़ा लिखा भी नहीं लग रहा था,
फिर जब वह गरीब व्यक्ति भगवान् का दर्शन करके जाने लगा, तो उस सेठ ने उसे अपने पास बुलाया और कहा, “क्या आप इस मंदिर की व्यवस्थापक के पद पर रहते हुए क्या मंदिर की व्यवस्था को सँभालने का काम करेंगे”
सेठ जी की बात सुनकर वह गरीब व्यक्ति बहुत ही आश्चर्य में पड़ गया और हाथ जोड़ते हुए बोला, “सेठ जी, में तो बहुत गरीब आदमी हूँ और पढ़ा लिखा भी नहीं हूँ, इतने बड़े मंदिर का प्रबंधन में कैसे संभाल सकता हूँ”
सेठ जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मुझे मंदिर की व्यवस्था के लिए कोई विद्वान पुरुष नहीं चाहिऐ, बल्कि मै तो ऐसे तो किसी योग्य व्यक्ति को इस मंदिर के प्रबंधन का काम सोंपना चाहता हूँ, जो इस मंदिर की व्यवस्था को सही से संभाल सके”
फिर उस गरीब व्यक्ति ने सेठ जी से आश्चर्य से पूछा की “लेकिन इतने सब श्रद्धालुओं में आपने मुझे ही योग्य व्यक्ति क्यों माना”
सेठ जी बोले “मै जानता हूँ की आप एक योग्य व्यक्ति हैं, मैंने सही व्यक्ति की पहचान के लिए मंदिर के रास्ते में मैंने कई दिनों से एक ईंट का टुकड़ा गाड़ा था, जिसका एक कोना ऊपर से निकल आया था, और कई दिनों से देख रहा था, कि उस ईंट के टुकड़े से कई लोगों को ठोकर लगती थी और कई लोग उस ईंट के टुकड़े से ठोकर खाकर गिर भी जाते थे, लेकिन किसी ने भी उस ईंट के टुकड़े को वहां से हटाने कि नहीं सोची,
और आप जब मंदिर के दर्शन के लिए आ रहे थे, तो आपको उस ईंट के टुकड़े से ठोकर नहीं लगी लेकिन फिर भी आपने उसे देखकर वहां से हटाने की सोची,
फिर मैंने देखा की आप मजदुर से फावड़ा लेकर गए और उस टुकड़े को खोदकर वहां की भूमि समतल कर दी,”
धनी व्यक्ति की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा, “मैंने तो कोई महान कार्य नहीं किया है, दूसरों के बारे में सोचना और रास्ते में आने वाली दुविधाओं को दूर करना तो हर मनुष्य का कर्तव्य होता है। मैंने तो बस वही किया जो मेरा कर्तव्य था।
सेठ जी मुस्कुराते हुए कहा, “अपने कर्तव्यों को जानने और उनका पालन करने वाले लोग ही योग्य लोग होते हैं।” इतना कहकर धनी व्यक्ति ने मंदिर प्रबंधन की जिम्मेदारी उस व्यक्ति को सौप दिया, इस तरह सेठ जी एक काबिल व्यक्ति की सही से पहचान पूरी कर ली थी,
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कहानी से शिक्षा
इस कहानी से हमे यही शिक्षा मिलती है की हमे किए कार्यो को लोग देखे या न देखे, तारीफ करे या ना करे फिर भी अपने कर्तव्यो को सही से जानना चाहिए और अपने जिम्मेदारियो को अच्छी तरह से निभाना चाहिए, तभी हम खुद को काबिल बना सकते है, हमे दिखावे के लिए नहीं, बल्कि अपने कर्तव्यो के ज़िम्मेदारी निभाना चाहिए।
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