Mahatma ji Ke Billi Ki Hindi Kahani
महात्मा जी की बिल्ली की कहानी
अक्सर हम सभी जैसा लोगो को करते हुए देखते है, वैसा ही हम भी करने लगते है, यानि ऐसे कई परंपराए बना लेते है, जिनके बारे मे हम सोच विचार भी नहीं करते है, जिसे अंधविश्वास भी कह सकते है, लेकिन हमे बिना जाने ऐसे अंधविश्वास वाली परम्पराओ को बिना सोचे विचारे नही करना चाहिए, तो चलिये आज इस पोस्ट इसी सोच पर आधारित महात्मा जी की बिल्ली की कहानी Mahatma ji ki Billi Hindi Kahani बताने जा रहे है, जो की हम सभी को यह कहानी प्रेरणा देती है,
महात्मा जी की बिल्ली
Mahatma ji ki Billi Hindi Kahani
एक बार एक महात्माजी अपने कुछ शिष्यों के साथ जंगल में आश्रम बनाकर रहते थें, एक दिन कहीं से एक बिल्ली का बच्चा रास्ता भटककर आश्रम में आ गया । महात्माजी ने उस भूखे प्यासे बिल्ली के बच्चे को दूध-रोटी खिलाया। वह बच्चा वहीं आश्रम में रहकर पलने लगा। लेकिन उसके आने के बाद महात्माजी को एक समस्या उत्पन्न हो गयी कि जब वे सायं ध्यान में बैठते तो वह बच्चा कभी उनकी गोद में चढ़ जाता, कभी कन्धे या सिर पर बैठ जाता । तो महात्माजी ने अपने एक शिष्य को बुलाकर कहा देखो मैं जब सायं ध्यान पर बैठू, उससे पूर्व तुम इस बच्चे को दूर एक पेड़ से बॉध आया करो। अब तो यह नियम हो गया, महात्माजी के ध्यान पर बैठने से पूर्व वह बिल्ली का बच्चा पेड़ से बॉधा जाने लगा ।
एक दिन महात्माजी की मृत्यु हो गयी तो उनका एक प्रिय काबिल शिष्य उनकी गद्दी पर बैठा। वह भी जब ध्यान पर बैठता तो उससे पूर्व बिल्ली का बच्चा पेड़ पर बॉधा जाता । फिर एक दिन तो अनर्थ हो गया, बहुत बड़ी समस्या आ खड़ी हुयी कि बिल्ली ही खत्म हो गयी। सारे शिष्यों की मीटिंग हुयी, सबने विचार विमर्श किया कि बड़े महात्माजी जब तक बिल्ली पेड़ से न बॉधी जाये, तब तक ध्यान पर नहीं बैठते थे। अत: पास के गॉवों से कहीं से भी एक बिल्ली लायी जाये। आखिरकार काफी ढॅूढने के बाद एक बिल्ली मिली, जिसे पेड़ पर बॉधने के बाद महात्माजी ध्यान पर बैठे।
विश्वास मानें, उसके बाद जाने कितनी बिल्लियॉ मर चुकी और न जाने कितने महात्माजी मर चुके। लेकिन आज भी जब तक पेड़ पर बिल्ली न बॉधी जाये, तब तक महात्माजी ध्यान पर नहीं बैठते हैं। कभी उनसे पूछो तो कहते हैं यह तो परम्परा है। हमारे पुराने सारे गुरुजी करते रहे, वे सब गलत तो नहीं हो सकते । कुछ भी हो जाये हम अपनी परम्परा नहीं छोड़ सकते।
कहानी से शिक्षा
यह तो हुयी उन महात्माजी और उनके शिष्यों की बात । पर कहीं न कहीं हम सबने भी एक नहीं; अनेकों ऐसी बिल्लियॉ पाल रखी हैं । कभी गौर किया है इन बिल्लियों पर? सैकड़ों वर्षो से हम सब ऐसे ही और कुछ अनजाने तथा कुछ चन्द स्वार्थी तत्वों द्वारा निर्मित परम्पराओं के जाल में जकड़े हुए हैं।
ज़रुरत इस बात की है कि हम ऐसी परम्पराओं और अधविश्वासों को अब और ना पनपने दें , और अगली बार ऐसी किसी चीज पर यकीन करने से पहले सोच लें की कहीं हम जाने – अनजाने कोई अन्धविश्वास को तो नहीं पाल रहे ?
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